Tuesday, April 23, 2024

मेरे ख्यालों में तुम एक परी थीं | HINDI KAVITA

मेरे ख्यालों में तुम एक परी थीं 

और मैं एक आम सा लड़का 

तुम्हारे ख्यालों में तुम एक परी थीं 

और मैं एक आम सा लड़का 

फिर हम दोनों के ना मिल पाने में गलती मेरी कैसे हुयी ?

मैं तो आम सा लड़का ही था हम दोनों ही के ख्यालों में 

गलती तो तुमसे हुयी 

ना तुम परी होकर भी खुद आम सी लड़की बन सकीं 

ना तुम परी होकर भी मुझे राजकुमार बना सकीं 


मेरे ख्यालों में तुम एक परी थीं 

और मैं एक आम सा लड़का । 


Friday, March 29, 2024

aapka rang | hindi kavita



 हज़ारों रंग बिखरे हुए हैं दुनिया में 

कोई रंग ऐसा कहाँ जो उनके रंग को व्यक्त करे 

उन आँखों में मदहोशी भी है और इन्द्रधनुषी सपने भी 

कोई कवि ऐसा कहाँ जो उनकी ख़ूबसूरती  को अभिव्यक्त करे।

( Poet - Manoj Gupta )

#man0707

Monday, March 25, 2024

रंग दीनो अपने ही रंग | HINDI KAVITA


 


" सखी री , भोर भये कान्हा मोहे , रंग दीनो अपने ही रंग

दूध दही माखन मोरा खायो , और पिलाई मोहे भांग

अब मोहे ना कोई सुधबुध , ना कोई रयो अब मोरे संग

सगरा जगत आये रहा , मोपे रंग डारन को

अब तू ही बता इ कैसे होई , क्योंकि

जोन होए श्याम रंग , ओपे चढ़े कौन रंग

और ओके लिये का सगरी दुनिया कौ धन

और का सगरी दुनिया को संग


सखी री , भोर भये कान्हा मोहे , रंग दीनो अपने ही रंग "

Friday, March 15, 2024

पत्ते | HINDI KAVITA


 

" पत्ते आज भी वहीँ बिखरे पड़े हैं

जिस राह पर कल हम साथ चले थे 

पत्ते पूछ रहे , क्यों आये हो तुम आज अकेले ?

मैं कैसे कहूँ  , अलग अलग राहों पे हम निकल चलें हैं 


पत्ते आज भी वहीँ बिखरे पड़े हैं

जिस राह पर कल हम साथ चले थे "

Tuesday, March 12, 2024

प्रेम पर अब मैं क्या लिखूं | HINDI KAVITA




प्रेम पर अब मैं क्या लिखूं 

प्रेम पर सब कुछ लिखा जा चुका 

अठारवीं सदी से लेकर आज तक 

करोड़ों सतहों को कुरेदा , उकेरा जा चुका 

तेरा .. मेरा .. उनका , हम सब का प्रेम है अपना अपना 

असल में प्रेम कुछ नहीं , बस है एक सुन्दर सलोना सपना 

पवित्र ह्रदय के मानव बनें हम , चाहिये बस इतना ही 

जैसा सलूक हम खुद से करें , दूसरों से भी वैसा ही 


प्रेम पर अब मैं क्या लिखूं 

प्रेम पर सब कुछ लिखा जा चुका 

अठारवीं सदी से लेकर आज तक 

करोड़ों सतहों को कुरेदा , उकेरा जा चुका .



Saturday, February 3, 2024

JUNGLE CAT | HINDI KAHANI | PART - 11


 नेहा , महीनों के बाद आज ब्यूटी पार्लर गयी थी 

वहाँ उसने " फर्स्ट नाईट स्पा पैकेज " लिया और ग्रूम होकर देर शाम तक होटल वापिस लौटी 

रात के नौ बजने वाले थे और वो तैयार होकर बेसब्री से मोहन के उसके कमरे में आने का इंतज़ार कर रही थी 


इधर मोहन को होटल का काम जल्दी से जल्दी निबटाते हुये भी रात के दस बज गए थे 

इस एक घंटे में इंतज़ार करते करते नेहा तब तक बिलकुल बेसब्र हो चुकी थी 

" कहिए नेहा जी , बताइये आपको मेरी क्या हेल्प चाहिए ? "

मोहन ने रूम के अंदर आते ही पूछा था ,

वो काफी थका हुआ और नेहा से बात करके जल्दी से जल्दी वापिस अपने कमरे में जाकर आराम करना चाहता था 

पर अगली लाइन कहने से पहले ही मोहन का ध्यान नेहा के कपड़ों और रूम की सजावट पर पड़ा ,

उसके सामने नेहा एक खूबसूरत गाउन में सजी खड़ी थी , उसके हाथ में उसका ड्रिंक गिलास था 

कमरे में हल्का हल्का रोमांटिक म्यूजिक चल रहा था ,

सामने टेबल पर मोहन की मनपसंद शराब और स्नैक्स सजा था 

मोहन को एहसास हुआ की यहां तो माज़रा कुछ और ही है 

मोहन अभी कुछ कहता की उससे पहले नेहा ही बोल पड़ी 

" मोहन जी , मैं किसी का उधार  नहीं रखती "

" मैं पिछले कई दिनों से एक घुटन सी महसूस कर रही हूँ "

" आप आज अपनी शर्त पूरी कर लीजिये "

" ताकि मैं फ्री हो जाऊ , और हम आगे के काम के बारे में बात कर सकें "


मोहन तो ऐसे ही बेध्यानी में बिना कुछ सोचे नेहा के बुलाएं पर उसके कमरे में आा गया था 

उसको तो पिछली बातों के बारे में बिलकुल ध्यान ही नहीं था 

उसने तो सोचा था की नेहा उससे नॉवल के बारे में कोई बात करना चाहती है 

ये रात बिताने वाली शर्त भी उसने ऐसे ही रख दी थी 

उसको लगा था की नेहा कभी उसकी इस शर्त को नहीं मानेगी , मना कर देगी 

वो बस नेहा को टालना चाहता था 

पर नेहा तो आखिर नेहा थी ,

उसने वो शर्त मान ली थी और आज उसे पूरा करने के लिए भी बिलकुल तैयार थी 


नेहा को ऐसे मादक रूप में अपने सामने देखकर , मोहन भी अब डबल माइंड हो गया था 

बरसों से वो स्त्री शरीर से दूर रहा था 

बरसों से रोज सुबह पांच बजे उसका दिन शुरू होता था , और आम तौर पर रात बारह बजे तक चलता था 

इसी बिजी जीवन में उसे कभी शरीर की भूख का ख्याल ही नहीं आया था 

पिछले इतने सालों में किसी औरत से उसका कभी कोई शारीरिक रिश्ता भी नहीं रहा था 

पर आज नेहा को उसके इस अवतार में देखकर मोहन जाने क्यों कमज़ोर पड़ता जा रहा था 

उसकी बरसों से दबी हुयी शरीर की भूख उसकी सोच पर हावी होती जा रही थी 

जो बात इतने बरसों में नहीं हुयी थी , वो आज जाने कैसे ? और क्यों हो रही थी ??

वो बरसों से होटल बिज़नेस में था , तरह तरह के टूरिस्ट्स आते थे 

ऐसा बीसियों बार हुआ था की उसके पास मौक़ा था किसी के साथ इंटिमेट होने का 

पर कुछ था , जो उसे हर बार रोक लेता था 

मगर आज उसका धैर्य जवाब दे रहा था , वो भी बहकता जा रहा था 


" तुम बाथ क्यों नहीं ले लेते ? "

अचानक नेहा ने मोहन को कहा 

मोहन को एहसास हुआ की वो आज सुबह से काम में ही था 

और उसने खुद भी महसूस हुआ की वो अच्छा स्मेल नहीं कर रहा है 

" ठीक है , मैं नहाकर आता हूँ "

इतना कहकर मोहन जाने के लिए मुड़ा तो नेहा ने उसे हाथ पकड़कर रोक लिया और बोली 

" आप यहीं नहा लीजिये ना "

और वो मोहन का हाथ पकड़ कर उसे अपने रूम के बाथरूम तक ले गयी


शावर के गर्म पानी में मोहन को ऐसा लग रहा था की जैसे वो आज बरसों बाद नहा रहा हो  

वो अपने शरीर को ऐसे रगड़ रहा था ,

जैसे जाने बरसों के जमे हुए ग़मों को आज एक ही दिन में अपने शरीर से खुरच खुरच कर छुड़ा देना चाहता हो 

पवित्र हो जाना चाहता हो 

कुछ देर बाद मोहन ने अभी अपना हाथ शावर को बंद करने के लिए बढ़ाया ही था ,

की एक खूबसूरत हाथ  ने उसे पीछे से आकर रोक लिया और शावर को चलने दिया 

और फिर वो खूबसूरत नग्न बदन उसके नग्न गीले बदन से लिपट गया 

गर्म पानी बरसता रहा 

और फिर वो जाने कबसे प्यासे दो बदन एक दूसरे की प्यास बुझाने लगे 


मोहन हड़बड़ाकर उठ बैठा 

उसने देखा की उसके बिलकुल सामने वाली खिड़की के बंद परदे से भी रौशनी छन्न कर आ रही थी 

सूरज चमक रहा था 

वो बिलकुल निर्वस्त्र बिस्तर पर था , उसके बिलकुल पास ही नेहा भी उसी हालत में सोइ हुयी थी 

मोहन का सर दर्द से फटा जा रहा था 

उसने टाइम देखने के लिए अपना मोबाइल ढूंढा तो वो उसे अपनी साइड टेबल पर ऑफ पड़ा मिला 

उसने झपट कर मोबाइल उठाया और ओंन किया 

उसने अपने कपड़े ढूंढे तो वो उसे कहीं नहीं दिखे ,

उसे याद आया की वो रात को नहाने गया था , तो उसने कपड़े वहीँ उतारे थे 

तो वो फटाफट बाथरूम में भागा , जल्दी जल्दी मुँह धोया , 

खुद को कुछ संयत किया , फटाफट कपड़े पहने और फिर मोबाइल लेकर उस कमरे से बाहर निकल गया 

उसका मोबाइल अब तक चालू हो गया था ,

उसने टाइम चेक किया तो सुबह के दस बज गए थे 


अपने रूम के जाकर , फटाफट नहाकर मोहन होटल लॉबी में आ गया 

लॉबी में टूरिस्ट्स की भीड़ लगी हुयी थी , सारा स्टाफ काम में जुटा था 

बहुत महीनों के बाद ऐसा हुआ था की मोहन इतनी लेट काम पर आया हो 

बल्कि वो तो रोज सुबह सबसे पहले काम पर आता था 

लॉबी में ही उसे रामदीन मिल गया 

रामदीन के चेहरे पर एक रहसयमयी मुस्कराहट थी 

मोहन का एहसास हो गया था की कुछ तो है जो इस धूर्त रामदीन को पता चल गया है 




JUNGLE CAT | HINDI KAHANI | PART - 10


 " तुम्हें मेरे साथ सोना पड़ेगा " , मोहन गुर्राया 

" डन "  नेहा ने एक पल भी सोचे बिना जवाब दिया और मुस्कुराने लगी 

उसकी ये मुस्कराहट मोहन के दिल में शूल की तरह चुभ रही थी 


मोहन वापिसी होटल की तरफ लौट रहा था 

रास्ते भर उसके दिमाग में बस यही सोच चल रही थी की क्या हो गया ये आजकल की लड़कियों को ?

इनके लिए किसी के भी सो जाना कोई अहमियत ही नहीं रखता 

क्या इनके लिए ये सब इतनी छोटी सी बात है 

बिलकुल मामूली सी 


नेहा हॉस्पिटल से डिस्चार्ज हो गयी थी 

पहले से बेहतर थी और वापिस होटल के रूम में ही शिफ्ट ह गयी थी 

सहगल साहब दिल्ली वापिस जा चुके थे 


" सर मुझे आपकी वो कहानी का एक रफ़ ड्राफ्ट आजकल में ही वेब टीम को अप्रूवल के लिए भेजना है "

" तो आज रात आप मेरे रूम में आ जाइये या मैं आपके रूम में आ जाती हूँ "

" ताकि आपकी वो शर्त ...... "

नेहा ने स्पष्ट शब्दों में मुस्कुराते हुए मोहन से कहा 

मोहन ने नेहा की बात को बीच में ही काट दिया और नज़रें चुराते हुए बोला 

" नहीं वो उसकी जल्दी नहीं है , पहले आपका अप्रूवल आ जाये "

" उसे हम फिर देख लेंगें "

इतना कहकर मोहन , नेहा से नज़रें चुराता हुआ उसके रूम से बाहर निकल गया 


अगले कुछ दिन नेहा दिन रात बस " जंगल कैट " पर ही काम करती रही 

जितना वो उस नॉवल को पढ़ती जा रही थी 

उतना ही वो मोहन की राइटिंग स्किल से प्रभावित होती जा रही थी 

उस नॉवल में एक ब्लॉक बस्टर मूवी के सारे एलिमेंट्स थे 

उसको पूरा विश्वास था की ये नॉवल तो वेब टीम हाथोंहाथ लेगी 

अगले सात दिनों की दिनरात की मेहनत के बाद आखिर नेहा ने उस नॉवल का एक ड्राफ्ट वेब टीम को भेज ही दिया 

और टीम का जवाब भी बस तीन दिनों में ही आ गया था 

वो बहुत खुश हुए थे और तुरंत कॉन्ट्रैक्ट साइन करना चाहते थे 


" सर वो वेब टीम का जवाब आ गया है "

" उन्हें कॉन्ट्रैक्ट साइन करना है और उससे पहले हमें भी अपना एक लीगल कॉन्ट्रैक्ट बनाना है "

" ताकि कोई फ्यूचर फसाद ना हो "

" तो सबसे पहले तो हम आज रात को आपकी पहली शर्त को पूरा कर लेते हैं "

" फिर आगे की बात कर लेते हैं "

नेहा के चेहरे पर एक शरारती मुस्कराहट थी 

" कल ही हम एक लीगल कॉन्ट्रैक्ट बना लेते हैं की अब से ये कहानी मेरी होगी 

इसपर आपका कोई राइट नहीं होगा "

" मैं इस कहानी को जैसे चाहूँ , जहाँ चाहूँ यूज़ कर सकती हूँ "

" आपको इसके बदले में पाँच लाख रूपये मिलेंगे "

इतना कहकर नेहा चुप हो गयी और मोहन के जवाब का इंतज़ार करने लगी 

" ठीक है आप कॉन्ट्रैक्ट ड्राफ्ट करा लीजिये "

और इतना कहकर मोहन फिर वहाँ से उठकर चला गया 

नेहा आश्चर्य से मोहन को जाते हुए देख रही थी , जैसे वो कोई अजूबा हो 

उसने मन ही मन सोचा " कैसा अजीब इंसान है यार ये ? "


आखिरकार अगले दो दिन बाद ही कॉन्ट्रैक्ट भी बन कर आ गया 

मोहन उस कॉन्ट्रैक्ट की एक एक लाइन को ध्यान से पढ़ रहा था 

ज्यादातर वहीँ आम सी लीगल बातें थी ,

जो गोल गोल घूम कर रिपीट हो रहीं थी की आज से इस नॉवल के सारे राइट्स नेहा के होंगें 

पर एक क्लोज पर आकर मोहन रुक गया 

उसमे लिखा था की अगले 2 महीनों तक रोजाना एक घंटा मोहन को नेहा के लिए देना होगा 

जिसमे नेहा नॉवल के बारे में उससे बात कर सके और उससे जानकारी ले सके 

" ये दो महीनों वाला क्लाज़ मुझे मंजूर नहीं है "

" मैं आपको अपने नॉवल के सारे राइट्स दे रहा हूँ "

" और क्या चाहिए आपको ? "

" या आपको एक खुद शब्द भी लिखना नहीं आता ?? "

" और बस नाम की ही राइटर हैं ??? "

इतना कहते कहते मोहन खुद काफी कड़वा हो गया था 

पर इसके विपरीत नेहा पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ा 

वो शांत ही रही और संयत स्वर में बोली 

" नहीं लिखना तो मुझे भी आता है , पर ये नॉवल आपका बेबी है "

" तो जितना आप इस नॉवल को जानते हैं , उतना तो मैं कभी भी नहीं जान पाऊँगी "

" तो मेरी इस सक्सेस के लिए बहुत जरूरी है की आप मुझे अपना समय दें "

" वैसे चाहें तो आप अपने उस समय की कीमत भी मांग सकते हैं "

" एक घंटा रोज के बदले एक घंटा रोज़ "

" ठीक रहेगा ना ?? "

नेहा खिलखिलाकर हँस पड़ी और उसकी ये बात सुनकर मोहन जल - भुन  गया था 


मोहन ने नेहा का कॉन्ट्रैक्ट साइन कर दिया 

नेहा ने उसे एक पाँच लाख का PDC चेक दे दिया 

अब नेहा जुट गयी " JUNGLE CAT " की कहानी को लिखने के लिए 

वो उस कहानी में अपना रंग भरना चाहती थी , उस कहानी को अपने शब्दों में ढालना चाहती थी 

कहीं ना कहीं उसको मोहन की बात चुभ गयी थी 

" या आपको एक खुद शब्द भी लिखना नहीं आता ?? "

" और बस नाम की ही राइटर हैं ??? "

मोहन के ये शब्द उसको अपनी कमियों का एहसास दिला रहे थे 

पर वो जितना भी कहानी में बदलाव करना चाहती , वापिस वहीँ लौट आती 

उसको अपना किया बदलाव हर बार कहानी में पैबंद की तरह लग रहा था 

कई दिनों तक दिन- रात मेहनत करने के बाद भी वो कहानी में कुछ बदलाव नहीं कर पायी थी 


" सर आज रात मुझे आपकी हेल्प चाहिए होगी "

" कहानी कहीं अटक रही है , आपकी राइटिंग में काफी खामियां हैं "

" चलो वो तो मैं ठीक कर दूंगीं "

" पर उन्हें ठीक करने के लिए मुझे आपसे कुछ बात करना जरूरी है "

" आप रात नौ बजे आ जाइये "

नेहा इतनी इगोस्टिक थी की उसने मोहन को उलटा ये कहा की उसकी कहानी में गलतियां हैं 


नेहा महीनों बाद उस दिन ब्यूटी पार्लर गयी 

उसने " फर्स्ट नाईट पैकेज " लिया 

रात के नौ बजने वाले थे और वो बेसब्री से मोहन के आने का इंतज़ार करने लगी